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प्रतिज्ञा

समझ गये यहीं जल-समाधि होगी। एक क्षण के लिए पूर्णा की याद आई। हाय! वह उनकी बाट देख रही होगी, उसे क्या मालूम कि वह अपनी जीवन-लीला समाप्त कर चुके। वसन्तकुमार ने एक बार फिर ज़ोर मारा; पर हाथ-पाँव न हिल सके। तब उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। तट पर लोगों ने डूबते देखा। दो-चार आदमी पानी में कूदे; पर एक ही क्षण में वसन्तकुमार लहरों में समा गये। केवल कमल के फूल पानी पर तैरते रह गये, मानो उस जीवन का अन्त हो जाने के बाद उसकी अतृप्त लालसा अपनी रक्त-रञ्जित छटा दिखा रही हो।









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