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प्रतिज्ञा

आज तक मैंने इन भावों को किसी से प्रकट नहीं किया था। व्यथित हृदय को व्यथित हृदय ही से सहानुभूति की आशा होती है, बस यही समझ लो। तो मैं जाकर आदमियों को भेजे देता हूँ, तुम्हारा असबाब उठा ले जायँगे।

पूर्णा को अब क्या आपत्ति हो सकती थी। उसका जी अब भी इस घर को छोड़ने को न चाहता था; पर वह इस अनुरोध को न टाल सकी। उसे यह भय भी हुआ कि कहीं यह मेरे इन्कार से और भी दुःखी न हो जायँ। आश्रय-विहीन अबला के लिए इस समय तिनके का सहारा ही बहुत था, तो वह इस नौका की कैसे अवहेलना करती; पर वह क्या जानती थी कि यह उसे उबारनेवाली नौका नहीं; वरन् एक विचित्र जल-जन्तु है, जो उसकी श्रात्मा को निगल जायगा?





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