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प्रतिज्ञा

तब अमृतराय ने हँसकर कहा--सड़्खिया न हो, तो मैं दे दूँगा। एक बार किसी दवा में डालने के लिए मँगवाई थी।

दाननाथ ने बिगड़कर कहा--मैं तुम्हारा सिर फोड़ दूँगा। तुम हमेशा से मुझ पर हुकूमत करते आये हो और अब भी करना चाहते हो; लेकिन अब मुझ पर तुम्हारा कोई दाँव न चलेगा। आख़िर मैं भी तो कोई चीज़ हूँ।

अमृतराय अपनी हँसी को न रोक सके।


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