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प्रतिज्ञा

कह दो, मञ्जूर है। बेचारी बूढ़ी मा के भाग खुल जायँगे। मुझे तो उस पर दया आती है।

बदरी॰--मुझे अब यह अफ़सोस हो रहा है कि पहले ही दानू से क्यों न विवाह कर दिया। इतने दिनों तक व्यर्थ में अमृतराय का मुँह क्यों ताकता रहा। आख़िर वही करना पड़ा।

देवकी--भावी कौन जानता था? और सच तो यह है कि दानू ने प्रेमा के लिए तपस्या भी बहुत की। चाहता तो अब तक कभी का उसका विवाह हो गया होता। कहाँ-कहाँ से सन्देशे नहीं गये, मा कितना रोई, सम्बन्धियों ने कितना समझाया; लेकिन उसने कभी हामी न भरी। प्रेमा उसके मन में बसी हुई है।

बदरी॰--लेकिन प्रेमा उसे स्वीकार करेगी, पहले यह तो निश्चय कर लो। ऐसा न हो, मैं यहाँ हामी भर लूँ और प्रेमा इनकार कर दे। इस विषय में उसकी अनुमति ले लेनी चाहिये।

देवकी--फिर तुम मुझे चिढ़ाने लगे! दानू में कौन-सी बुराई है, जो वह इनकार करेगी! लाख लड़कों में एक लड़का है। हाँ, यह ज़िद हो कि करूँगी तो अमृतराय से करूँगी, नहीं तो क्वारी रहूँगी; तो जन्मभर उनके नाम पर बैठी रहे। अमृतराय तो अब किसी विधवा से ही विवाह करेंगे, या सम्भव है करें ही न। उनका वेद ही दूसरा है। मेरी बात मानो, दानू को ख़त लिख दो। प्रेमा से पूछने-पाछने का काम नहीं। मन ऐसी वस्तु नहीं है, जो काबू में न आये। मेरा मन तो अपने पड़ोस के वकील साहब से विवाह करने का था। उन्हें कोट-पतलून पहने बग्घी पर कचहरी जाते देखकर निहाल हो जाती थी; लेकिन

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