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प्रतिज्ञा

हैं। वनिता-आश्रम खोलने का तो जीजाजी का बहुत दिनों से विचार था; कई बार मुझसे उसके विषय में बातें हो चुकी हैं। लेकिन बाबू दाननाथ अब यह कहते फिरते हैं कि वह इस बहाने से रुपए जमा करके ज़मीदारी लेना चाहते हैं।

बदरी॰--कमला कहते थे।

प्रेमा--हा, वही तो कहते थे। दाननाथ ने द्वेष-वश कहा हो, तो आश्चर्य ही क्या। आप ज़रा उन्हें बुलाकर पूछें।

बदरी॰--कमला झूठ बोल रहा है, सरासर झूठ! दानू को मैं ख़ूब जानता हूँ। उसका-सा सज्जन बहुत कम मैंने देखा है। मुझे तो विश्वास है कि आज अमृतराय के हित के लिए प्राण देने का अवसर आ जाय, तो दानू शोक से प्राण दे देगा। आदमी क्या हीरा है। मुझसे जब मिलता है, बड़ी नम्रता से चरण छू लेता है।

देवकी--कितना हँसमुख है। मैंने तो उसे जब देखा, हँसते ही देखा। बिलकुल बालकों का स्वभाव है। उसकी माता रोया करती है कि मैं मर जाऊँगी, तो दानू को कौन खिलाकर सुलायेगा। दिन-भर भूखा बैठा रहे, पर खाना न माँगेगा और अगर कोई बुला-बुलाकर खिलाये, तो सारा दिन खाता रहेगा। बड़ा सरल स्वभाव है। अभिमान तो छू नहीं गया।

बदरी॰--अब की डाक्टर हो जायगा।

लाला बदरीप्रसाद उन आदमियों में थे, जो दुबधे में नहीं रहा चाहते थे, किसी न किसी दिन निश्चय पर पहुँच जाना, उनके चित्त की शान्ति के लिए आवश्यक है। दादनाथ के पत्र का ज़िक्र करने

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