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प्रतिज्ञा

मारने दौड़ते थे, दो-चार को तो पीट ही दिया था, यहाँ तक कि एक बार द्वार पर आकर किसी भिक्षुक को, यदि कमला से मुठ-भेड़ हो गई, तो उसे दूसरी बार आने का साहस न होता था। सुमित्रा में नम्रता, विनय और दया थी; कमला में घमण्ड, उच्छृङ्खलता और स्वार्थ। एक वृक्ष का जीव था, दूसरा पृथ्वी पर रेंगनेवाला। उनमें गेल कैसे होता। धर्म का ज्ञान, जो दाम्पत्य जीवन का सुख-मूल है, दोनो में किसी को न था।

पूर्णा के आने से कमला और सुमित्रा एक दूसरे से और भी पृथक हो गये। सुमित्रा के हृदय पर लदा हुआ बोझा उठ-सा गया। कहाँ तो वह दिन के दिन विरक्तावस्था में खाट पर पड़ी रहती थी, कहाँ प्राय वह हरदम हँसती-बोलती रहती थी। कमला की उसने परवाह ही करनी छोड़ दी। वह कब घर में आता है, कब जाता है, कब खाता है, कब सोता है, इसकी उसे ज़रा भी फ़िक्र न रही। कमलाप्रसाद लम्पट न था। सबकी यही धारणा थी कि उसमें चाहे और कितने ही दुर्गुण हों, पर यह ऐब न था। किसी स्त्री पर ताक-झाँक करते उसे किसी ने न देखा था। फिर पूर्णा के रूप ने उसे कैसे मोहित कर लिया, यह रहस्य कौन समझ सकता है कदाचित् पूर्णा की सरलता, दीनता और आश्रय-हीनता ने उसकी कुप्रवृत्ति को जगा दिया। उसकी कृपणता और कायरता ही उसके सदाचार का आधार थी। विलासिता महँगी वस्तु है। जेब के रुपए खर्च करके भी किसी आफ़त में फँस जाने की जहाँ प्रतिक्षण सम्भावना हो, ऐसे काम में कमलाप्रसाद-जैसा चतुर आदमी न पड़ सकता था। पूर्णा के विषय में उसे कोई भय न था। वह इतनी सरल

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