पृष्ठ:प्रतिज्ञा.pdf/९१

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साड़ियाँ लौटाकर और कमलाप्रसाद को अप्रसन्न करके भी पूर्णा का मनोरथ पूरा न हो सका। वह उस सन्देह को ज़रा भी न दूर कर सकी, जो सुमित्रा के हृदय पर किसी हिंसक पशु की भाँति आरूढ़ हो गया था। बेचारी दोनों तरफ से मारी गई। कमला तो नाराज़ हो ही गया था, सुमित्रा ने भी मुँह फुला लिया। पूर्णा ने कई बार इधर-उधर की बातें करके उसका मन बहलाने की चेष्टा की; पर जब सुमित्रा की त्योरियाँ बदल गई; और उसने

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