पृष्ठ:प्रबन्ध पुष्पाञ्जलि.djvu/१३८

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विस्यूवियस के विषम स्फोट।
(१)

पृथ्वी पहले एक प्रकार का जलता हुआ प्रवाही पदार्थ थी। लोहा और ताँबा आदि धातु गलने पर जैसे तरल और अग्निमय हो जाते हैं, पृथ्वी भी वैसी ही थी। वह धीरे धीरे ठण्डी हो गई है। उसके पेट में, परन्तु, अभी तक ज्वाला भरी हुई है। पृथ्वी का जो भाग समुद्र के पास है वहाँ बड़ी बड़ी दरारों से, कभी कभी, पानी का प्रवाह पृथ्वी के जलते हुए पेट में चला जाता है। वहाँ आग का संयोग होने से पानी की भाफ हो जाती है और वह बड़े वेग से पृथ्वी के ऊपरी भाग को तोड़ कर बाहर निकलने का यत्न करती है। इस प्रकार की भीषण भाफ जब पृथ्वी के उदर में इधर उधर आघात करती है तभी भूकम्प आता है। जहाँ वह पृथ्वी को तोड़ कर ऊपर निकलने लगती है वहाँ ज्वालामुखी पर्वत हो जाते हैं। ऐसे पर्वतों के नीचे की भाफ निकल जाने पर वे शान्त हो जाते हैं। जब फिर