पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२०५

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माप क्या हो, आपका।" अपना महत्त्व दिखलाइए। सच कहिए, क्या ऐसे उनत हृदय को दुख देना है अच्छा ईश्वर-नीति म ? केवल चुप हो जाना ही है आपका- सन्धि शाति के मगलघोष-समान ही, दो महत्त्वमय हृदय एक जब हो गये फैलेगा फिर वह महान सौरभ यही जिसके सुखमय गध प्रेम मे मत्त भारत के नर गावेगे यश अकबर ने फिर कहा-'वात यह ठीक है, अब न लडाई राणा से उपयुक्त है। भेजो आज्ञापन शीघ्र सैन्य को, सव जत्दो ही चले आयें अजमेर में।" कहा खानखाना ने-'हे उनत हृदय- भारत के सम्राट दयामय आपकी सुयश-लता का बीज उवरा भूमि मे शानि-वारि मे मिञ्चित हो, फलवती हो । अव न काम है जाने का काश्मीर को इन चरणो को सेवा ही भू-स्वर्ग है।" उस 1 प्रमाद वाङ्गमय ।। १४२॥