पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२४७

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विनय बना लो हृदय-चीच निज धाम करो हमको प्रभु पूरन काम शका रहे न मन मे नाथ रहो हरदम तुम मेरे साथ अभय दिखला दो अपना हाथ न भूलें कभी तुम्हारा नाम बना लो हृदय-बीच निज धाम मिटा दो मन की मेरे पीर करा दो कर्म देव अब धीर पिला दो स्वच्छ प्रेममय नीर बने मति सुन्दर लोक ललाम बना लो हृदय-चीच निज धाम काट दो ये सारे दुख-द्वन्द्व न आवे पास कभी छल-छन्द मिलो अब आके आनंदवन्द रहे तव पद मे आठो याम बना लो हृदय-बीच निज धाम परो हमको प्रभु पूरन-काम प्रसाद वाङ्गमय ।। १८६॥