पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/२५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यदि कहो घन पावस-काल का प्रबल वेग अहो क्षण काल का यह नही मिलना कहला सके मिलन तो मन का मन से सही जगत को नव कल्पित कल्पना भर रही हृदयाब्धि गंभीर मे 'तुम नही इसके उपयुक्त हो कि यह प्रेम महान संभाल लो' जलधि मै न कभी चाहती कि 'तुम भी मुझपर अनुरक्त हो' पर मुझे निज वक्ष उदार मे जगह दो, उसमे सुख मे रहे" कानन कुसुम ॥१५॥ R..