पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३१७

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कहो? ? शिाथल शयन सम्भोग दलित कवरी के कुसुम सदृश कैसे, प्रतिपद व्याकुल आज छन्द क्यो होते हैं प्रियतम । ऐसे वाणी मस्त हुई अपने मे, उससे कुछ न कहा जाता, गद्गद् कण्ठ स्वयं सुनता है जो कुछ है वह कह जाता ।। ऊंचे चढे हुए चीणा के तार मधुप से गूंज रहे, पर्दा रखते हैं सुर पर वे मनमाने से बोल रहे। जीवनधन | यह आज हुआ क्या बतलाओ, मत मौन रहो, वाह्य वियोग, मिलन या मन का, इसका कारण कौन हो? प्रसाद वाङ्गमय ।। २६०॥