पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३१९

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प्यास हृदय की दारुण ज्वाला से, हुए व्याकुल हम उस दिन पूण । देखती प्यासी आंखें थी रस भरी आखो को मदघूर्ण । प्यास बढती ही जाती थी, बुझाने की इच्छा थी वडी । दिया उन हाथो ने प्याला, अचञ्चल चित्त हुआ उस घडी ।। राग रञ्जित थी वह पेया, उसे पीते पीते रुक प्रश्न मेरा यह उनसे था, पूछने से वे प्रमुदित हुए। नशीली आँखो सदृश कहो, तुम्हारी ही, इसमे है नशा "गुलावी हल्का सा" बोले, स्तब्ध हो रही मोह की निशा ।। गये। ? प्रसाद वाङ्गमय ॥२६२॥