पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३४१

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कसौटी तिरस्कार कालिमा कलित है, अविश्वास सी पिच्छल है। कौन कसौटी पर ठहरेगा ? विसमे प्रचुर मनोबल है? तपा चुके हो विरह वह्नि म, काम जंचाने का न इसे । शुद्ध सुवण हृदय है प्रियतम । तुमको शका केवल है। बिका हुआ है जीवन धन यह कब का तेरे हाथो मे। बिना मूल्य का, है अमूल्य यह ले लो इसे, नहीं छल है । कृपा कटाक्ष अलम् है केवल, कोरदार या कोमल हो। क्ट जावे तो सुख पावेगा, बार बार यह विह्वल है। सौदा कर लो वात मान लो, फिर पीछे पछता लेना] खरी वस्तु है, कही न इसमे वाल बराबर भी बल है। प्रसाद वाङ्गमय ।।२८६ ।।