पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/३५९

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है बढी जटा सी कैसी उडती है धूल हृदय मे किसकी विभूति है ऐसी? जो घनीभूत पीडा थी मस्तक मे स्मृति सी छायो दुदिन मे आसू वनकर वह आज बरसने आयी। मेरे क्रन्दन मे बजती क्या वीणा, जो सुनते हो धागो से इन आसू के निज करणापट बुनते हो । रो रोकर सिसक सिसक कर कहता में करुण कहानी तुम सुमन नोचते सुनते करते जानी अनजानी। मै बल खाता जाता था मोहित बेसुध बलिहारी अन्तर के तार सिंचे थे तीखी थी तान हमारी झझा झकोर गजन था बिजली थी, नीरदमाला, पा कर इस शून्य हृदय को सव ने आ डेरा डाला। घिर जाती प्रलय घटाएँ कुटिया पर आ कर मेरी तम चूण बरस जाता या छा जाती अधिक अँधेरी । प्रसाद वाड्मय ॥३०६॥