पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कोमल कुसुमो की मधुर रात । शशि-शतदल का यह सुख विकास, जिसमें निमल हो रहा हास, उसकी सांसा का मलय वात । कोमल कुसुमो की मधुर रात वह लाज भरी कलियां अनन्त, परिमल पूंघट ढंक रहा दन्त, पंप प चुप चुप कर रहो बात वोमल कुसुमो की मधुर रात । नक्षन-कुमुद को अलम माल, वह शिथिल हमी का सजल जाल- जिसम सिल सुलते स्रिन पात । कामल कुसुमो पी मधुर रात । वितने लघु-लघु कुड्मल अधीर, गिरते गिशिर-सुग पनीर, हो रहा विश्व सुख-पुरुष गात । वन रहर ॥३५१॥