पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४६९

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भरी वासना सरिता का वह कैसा था मदमत्त प्रवाह, प्रल्य-जलधि मे सगम जिसका देव हृदय था उठा कराह ।" "चिर किशोर-वय, नित्य विलासी, सुरभित जिससे रहा दिगत, आज तिरोहित हुमा कहा वह मधु से पूण अनत वसत? कुसुमित कुजो मे वे पुलकित प्रेमालिंगन हुए विलीन, मौन हुई है मूच्छित ताने और न सुन पडती अन बीन । अब न पालो पर छाया सी पडती मुख की सुरभित भाप, भुज मूला म, शिथिल वसन की व्यस्त न होती है अब माप । प्रसाद वाङ्गमय ।।४२०॥