पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४८६

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"यह क्या मधुर स्वप्न सो झिलमिल सदय हृदय मे अधिक अधीर, व्याकुलता सो व्यक्त हो रही आशा बनकर प्राण समीर। सो छविमान, यह कितनी स्पृहणीय बन गई मधुर जागरण स्मिति को लहरो सी उठती है नाच रही ज्यो मधुमय तान। पुकार है शीतल दाह, जीवन | जीवन । की खेल रहा है किसके चरणो मे नत होता नव प्रभात का शुभ उत्साह। 1 वरदान सदृश क्यो लगा गॅजने कानो मैं भी कहने लगा, शाश्वत नभ के गानो मे। आशा ॥४३७॥