पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/४९४

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विश्व कमल की मृदुल मधुकरी रजनी तू किस कोने आती चूम चूम चल जाती पढी हुई किस टोने से । 223 किस दिगत रेखा मे इतनी सचित कर सिसकी सी साँस, यो समीर मिस हाफ रही सी चली जा रही किसके पास । विकल खिलखिलाती है क्यो तू? इतनी हँसी न व्यथं बिखेर, तुहिन कणो, फेनिल लहरो मे, मच जावेगी फिर अघेर । चूंघट उठा देख मुसक्याती किसे ठिठक्ती सी आती, विजन गगन में किसी भूल सी किसको स्मृति पथ मे लाती। रजत कुसुम के नव पराग सी उडा न दे तू इतनी धूल, इस ज्योत्स्ना की, भरी बावली । तू इसमे जावेगी भूल। आशा ॥४४९॥