पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५२४

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"प्यासा हूँ में अब भी प्यासा सतुष्ट ओघ से मै न हुआ, आया फिर भी वह चला गया तष्णा को तनिक न चैन हुआ। देवो को सृष्टि विलीन हुई अनुशीलन मे अनुदिन मेरे, मेरा अतिचार न वद हुआ उमत्त रहा सबको घेरे । मेरी उपासना करते वे मेरा सक्त विधान बना, विस्तृत जो मोह रहा मेरा वह देव विलास वितान तना। मैं काम रहा सहचर उनका उनके विनोद का साधन था, हँसता था और हंसाता था उनका में कृतिमय जीवन था। पाम ॥४८१॥