पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५३३

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गिर रहा निस्तेज गोलय जलधि म असहाय, घन पटल म डूबता था पिरण का ममुदाय । कण का अवसाद दिन से कर रहा छल छद, मधुवरी का सुरम मचय हो चला अब बद । उठ रही थी कारिमा धूसर क्षितिज मे दोन, भेंटता अतिम अरण आलोक वैभव हीन । यह दरिद्र मिलन रहा रच एक करुणा लोक, शोक भर निजन निध्य मे बिछुडते थे कोर । मनु अभी तक मनन करते थे लगाये ध्यान, काम के सदेश से ही भर रहे थे कान । इवर गृह म आ जुटे थे उपकरण अधिकार, शस्य पशु या धाय का हाने लगा अचार । प्रमाद वाङ्गमय ।। ४९२॥