पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/५८९

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श्रद्धे । यह नव म प नही- चरने का रघु जीवन अमोल, मैं उसको निश्चय भोग चरें जो सुन चल्दल मा रहा डोल । देखा क्या तुमने कभी नही स्वर्गीय सुसो पर प्रलय-नृत्य ? फिर नाश और चिर निद्रा है तव इतना क्यो विश्वास सत्य? यह चिर प्रशात मगल की क्यो अभिलापा इतनी रही जाग? यह सचित क्यो हो रहा स्नेह क्सि पर इतनी हो सानुराग 7 यह जीवन का वरदान, मुझे दे दो रानी अपना दुलार! केवल मेरी ही चिता वा तव चित्त वहन कर रहे भार । मेरा सुदर विश्राम बना सृजता हो मधुमय विश्व एक जिसमे बहती हो मधु वारा लहरें उठती हो एक एक । प्रसाद वाङ्गमय ।। ५५८॥