पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६४४

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"इसे दड देने में बैठी या करती रखवाली में, यह कैसी है विकट पहेली कितनी उलझन वाली में? कल्पना है मीठो यह इमसे कुछ सुन्दर होगा, हाँ कि, वास्तविकता से अच्छी सत्य इसी को कर देगा।" चौक उठी अपने विचार से कुछ दूरागत ध्वनि सुनती, इम निस्तब्ध निशा में कोई चली आ रही है वहती- "अरे बना दो मुझे दया कर कहाँ प्रवासी है मेरा? उसी बावरे से मिलने को डाल रही हूँ में फेरा। निर्वेद ॥२१॥ ४०