पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/६७२

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तुम दोनो देसो राप्ट नीति, शासक बन फलाओ न भीति मै अपने मनु को खोज चली सरिता मरु नग या कुज गली, वह भोला इतना नही छली । मिल जायेगा, हूँ प्रेम पली, तब देखू पैसी चली रीति, मानव ! तेरी हो सुयश गीति ।" बोला बालक “ममता न तोड जननी | मुझसे मुँह यो न मोड, पालन तेरी आज्ञा का कर वह स्नेह सदा करता लालन- मैं मरूं जिऊँ पर छुटे न प्रन, वरदान बने मेरा जीवन । जो मुझको तू यो चलो छोड तो मुझे मिले फिर यही क्रोड ।' दशन ॥६५३॥