पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/७११

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वह अपलक लोचन अपने पदाग्न विलोकन करती। पथ प्रशिका सी चलती धीरे धीरे डग भरती। बोली, "हम जहा चले है वह है जगती का पावन, साधना प्रदेश किसी का शीतल अति शात तपोवन ।" 'कैसा? क्यो शात तपोवन ? विस्तृत क्यो नहीं बताती," बालक ने कहा वह बोली कुछ सकुचाती। इडा से प्रमाद वाङ्गमय ।।६९०।।