पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 1.djvu/७६

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अयोध्या का उद्धार "नव तमाल क्ल कुज सो धने सरित-तीर अति रम्य हैं वने । अरघ रैनि महँ भीजि भावती रसत चारु नगरी 'कुशावती" । युग याम व्यतीत यामिनी बहुतारा किरणालि मालिनी। निज शान्ति सुराज्य थापिके शशिकी आज वनी जु भामिनी।। विमल विधुकला को कान्ति फैली भली है सुललित बहुतारा हीर-हारावली है। सरवर-जलहूँ मे च द्रमा मन्द डोले वर परिमल पूरो पौन कीन्हे कलोले। मन मुदित मराली जे मनोहारिनी है मदकल निज पीके सग जे चारिनी है। तह कमल-विलासी हँस की पाति डोले द्विजकुल तरुशाखा म क्यों मन्द वोले।। चियापार ॥९॥