पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१२९

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किया था, तो क्या इसकी मां का पता बता सकते हो? ओह । मैं उसे भलीभांति जानता हूँ पर अब वह कहा है, नही कह सकता । क्योकि उस लडके को पाकर भी वह सुखो न रह सकी । उसे राह म ही सन्देह हो गया कि यह मरी लडकी मे लडका नही वना, वस्तुत कोई दूसरा लडका है पर मैंन उसे डांटकर समझा दिया कि अब अगर तू किसी से कहगी, तो लडका चुराने के अभियोग में सजा पावेगी । वह लडका भी रोते ही दिन बिताता । कुछ दिन बाद हरद्वार का एक पडाव में आया । वह उमी विधवा के घर म ठहरा। उन दाना में गुप्त प्रेम हो गया। अकस्मात् वह एक दिन लडके को लिये मरे पास आई और बोली -- ६स नगर के किसी अनाथालय में रख दो, मैं अब हरद्वार जाती हूँ। मैने कुछ प्रतिवाद न किया, क्याकि उसका अपन गाव के पास स टल जाना ही अच्छा समझता था। मैं सहमत हुआ । और वह विधवा उसी पडे व साथ हरद्वार चली गई । उसका नाम था नन्दा। अधा इतना कहार चुप हुआ। विजय न कहा-बुड्ढे । तुम्हारी यह दशा कम हुई ? वह भुनकर क्या करागे । अपनी करनी का फल भोग रहा हूँ इसीलिए मैं अपनी पाप-क्या सबस कहता पिरता हूँ, तभी ता इनस भट हुई। भीख दी माता, अब हम जायें--अन्ये न कहा। सरला ने कहा-~अच्छा. एक बात बताओगे? क्या? उस बालक के गल म एक मोन का वडा-सा यत्र था, उम भी तुमने उतार लिया होगा? -मरता न उत्कण्ठा स पूछा। ___न न न । वह वातर तो उसे बहुत दिना नक पहने था, और मुझे स्मरण है, वह तब तक या, जब मैंने उसे अनायालय म सौंपा था । ठीक स्मरण है, वहा के अधिकारी स मैंन कहा था~-इसे मुरक्षित रखिए, सम्भव है दि इसको यही पहिचान हो, क्यापि उस वारक पर मुझे दया आई, परन्तु वह दया पिशाच की दया थी। महसा विजय ने पूछा- क्या आप बता सकती है-वह कैमा यत्र था? वह यत्र हम लागा क वश का प्राचीन रक्षा-वच था, न जाने कब से मेरे कुल के सब नहका दा वह एक वरस की अवस्था तक पहनाया जाता था । वह एक त्रियोण स्वर्ण-यत्र था। -कहते-कहते सरला क आमू बहने लगे । ___ अन्धे को भीख मिली। वह चला गया। सरला उठकर एकान्त में चली गई । घण्टी कुछ काल तक विजय को अपनी आर आर्पित करने के चुटकुले छाडती रही, परन्तु विजय एकान्त-चिन्ता-निमग्न बना रहा। काल र