पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१४०

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गास्वामी जी की आज्ञा है कि ___जाग कुछ पहा म मगल असम हा गया उसका गला भरान लगा। जा वस्तु चाहिए उस भण्डारीजा स जावर हए मैं कुछ नही जानती। -~~-यमुना अपन काल्पनिय मुख म भी बाधा हात दखकर अधीर हा उठी। मगत न फिर सयत स्वर म कहा तुम्ही स बहन की आज्ञा हुई है। जवकी यमुना न स्वर पहचान और सिर उठाकर मगन का दखा। दारुण पीडा स वह कलजा यामपर बैठ गई । विद्य द्वग स उस मन म यह विचार नाच उठा कि मगल क ही अत्याचार क कारण म वात्सल्य-मुख स वञ्चित हूँ। इधर मगल ने समझा कि मुझ पहचानवर ही वह तिरस्कार कर रही है । आग कुछ न कह वह लोट पडा। ___ गास्वामीजी वहाँ पहुँच ता दखत है---मगल लाटा जा रहा हजार यमुना बेठी रा रही है । उन्होन पूज-क्या है वटी यमुना हिचकियाँ लकर रान लगी। गोस्वामीजी बड सन्दह म पडे । कुछ काल तक खड रहन पर व इतना कहत हुए चल गय वि-चित्त सावधान करव मर पास आकर सब बात कह जाना। यमुना गास्वामीजी की सदिग्ध आज्ञा स ममाहत हुइ और अपन का सम्हालन का प्रयत्न वरन लगी। रात-भर उस नीद न जाइ। १०८ प्रसाद वाङ्मय