पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१४२

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क्था स । भयानक जनक्षय करके भी सात्विक विचारो की रक्षा हुई। और : मुदृढ महाभारत की स्थापना हुई, जिसम नृशस राजन्यवर्ग नप्ट किय गय पुरुषोत्तम ने वदा के अतिवाद और उनके नाम पर होन वाले अत्याचारा व उच्छेद क्यिा । वुद्धिवाद का प्रचार हुआ। गीता द्वारा धर्म की विश्वात्मा की विराट् की, आत्मवाद की, विमल व्याख्या हुई । स्त्री, वैश्य, शूद्र और पापया कहकर जो धर्माचरण के अनधिकारी समझे जात 4--उन्ह धर्माचरण का अधि वार मिला । माम्य की महिमा उद्घापित हुई। धम य राजनीति म, ममाज नीति म, सर्वत्र विकास हुआ। वह मानवजाति के इतिहास म महापर्व था। पत्र और मनुष्य के भी साम्य की घापणा हुई। वह पूर्ण मस्कृति थी। उसर पहल भी वैसा नही हुआ और उसक बाद भी उतनी पूर्णता ग्रहण करन के लिए मानक शिक्षित न हो सो क्यावि मत्य को इतना ममष्टि से ग्रहण करन क लिए को दूसरा पुरपातम नहीं हुआ। मानवता का सामञ्जस्य बन रहने की जो व्यवस्था उन्हाने की है, वह आगामी अनन्न दिवसा तक अक्षुण्ण रहगी। तस्मान्नोद्विजते लोको लोकानोद्विजते च य जा लोक से न धवराये और जिमस लोक न उद्विग्न हो वही पुरपोत्तम का प्रिय मानव है जो सृष्टि को सफल बनाता है। विजय ने प्रश्न करन की चेष्टा की, परन्तु उसका साहम नही हुआ। गास्वामी न व्यासपोठ म हटते हुए चारो ओर दृष्टि धुमाई, यमुना और मगल नहीं दिखाई पडे। वे उन्हे खाजते हुए चन पडे । श्रोतागण भी चल गये थ । कृष्णशरण न यमुना को पुकारा। वह उठकर आई। उसकी आखे अरुण मुख विवर्ण, रसना वाक और हृदय धडकनो से पूर्ण था । गोस्वामीजी न उसस कुछ न पूछा । उसे माथ आन का मकेत करवे वे भगल की कोठरी की ओर बढे। मगल अपन बिछावन पर पड़ा था । गोस्वामीजी को देखत ही उठ खडा हुआ। वह अभी भी ज्वर से आक्रान्त था। गोस्वामीजी ने पूछा-मगल | तुमने इस अबला का अपमान किया था । मगल चुप रहा। बोलो, क्या तुम्हारा हृदय पाप में भर गया था? मगल फिर भी चुप । अब गोस्वामीजी से न रहा गया । तो तुम मौन रहकर अपना अपराध स्वीकार करते हो? वह बोला नहीं। तुम्ह चित्त-शुद्धि की आवश्यकता है । जाओ सेवा म लगो, समाज-सवा वरक अपना हृदय शुद्ध बनाआ । जहाँ स्त्रियाँ मताई जार्य, मनुष्य अपमानित हो, वहाँ ११० प्रसाद वाङ्मय