पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१४५

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पुरुषोत्तम की जय । ---की ध्वनि से वह स्थान गूंज उठा। बहुत-से लोग चले गये। विजय ने हाथ जोडकर कहा-~महाराज | मै कुछ पूछना चाहता हूँ। मैं इस समाज स उपेक्षिता-अज्ञातकुलशीला घण्टी से ब्याह करना चाहता हूँ, इसम आपकी क्या अनुमति है। मेरा तो एक ही आदर्श है । तुम्ह जानना चाहिए कि परस्पर प्रेम का विश्वास कर लेने पर यादवो के विरुद्ध रहते भी मुभद्रा और अजुन के परिणय को पुष्पात्तम ने सहायता दी। यदि तुम दोनो म परस्पर प्रेम है, ता भगवान् को साक्षी देकर तुम परिणय के पवित्र बन्धन में बंध सकते हो। –कृष्णशरण ने कहा। विजय बडे उत्साह से घण्टी का हाथ पकडे देव विग्रह के सामन आया, और । वह कुछ बोलना ही चाहता था कि यमुना आकर खड़ी हो गई। वह कहन लगी--विजय बाबू, यह ब्याह आप केवल अहकार से करने जा रहे है, आपका प्रेम घण्टी पर नहीं है। बुड्ढा पादरी हँसन लगा। उसन कहा--लोट जाओ बेटी । विजय, चना मब लोग चले। विजय न हतबुद्धि के समान एक बार यमुना को देखा। घण्टी गडी जा रही थी। विजय का गला पकडकर जैस किसी ने धक्का दिया। वह सरला के पास लोट जाया। पतिका घबराकर सबसे पहिले ही चली। सब तांगो पर आ बैठ । गोस्वामी के मुख पर स्मित-रेखा झलक उठी । ककाल : ११५