पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१४८

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उसकी आँखो म बनत और विगडते ये, पर वह आमन ममस्या हर करन म असमय था। धन की कठार आवश्यक्ता एसा वृत्त खोचती दि वह उसके बाहर जाने म असमर्थ था। ___चन्दा थाली लिय आई। श्रीचन्द्र उसकी सौन्दय-छटा देखकर पलभर क लिए धन-चिन्ता-विस्मृत हा गया ! हृदय एक वार नाच उठा । वह उठ बैठा । चन्दा ने सामने बैठकर उसकी भूख जगा दी। ब्यालू करत-करत श्रीचन्द्र ने कहा -चन्दा, तुम मरे लिए इतना कष्ट करती हो । चन्द्रा---और तुमको इस कप्ट म चिन्ता क्या है ? श्रीचन्द्र-यही कि मैं इसका क्या प्रतिकार कर सकूगा । चन्दा-प्रतिकार मै स्वय कर लूंगी। हाँ, पहल यह ता बताआ-अब तुम्हार ऊपर कितना ऋण है ? श्रीचन्द्र--अभी बहुत है। चन्दा-क्या कहा । अभी बहुत है ? श्रीचन्द्र--हाँ, अमृतसर वी सारी स्थावर सम्पत्ति अभी बन्धक है । एक लाख रुपया चाहिए। एक दीर्घ नि श्वास लकर श्रीचन्द्र न थाली टाल दी। हाथ-मुंह धोकर आरामकुर्सी पर जा लेटा । चन्दा पास ही कुर्सी खीचकर बैठ गई। अभी वह पैतीस से ऊपर की नही है । यौवन है । जान जान कर रहा है पर उसक सुडौल अग छोडकर उसस जाते नही बनता । भरी-भरी गोरी वाहे उसने गले म डालकर थोचन्द्र का एक चुम्बन लिया । श्रीचन्द्र को ऋण चिन्ता फिर सतान लगी। चन्दा ने दखा, श्रीचन्द्र क प्रत्यक श्वास म रुपया रुपया | का नाद हा रहा था । वह चौक उठी। एक बार स्थिर दृष्टि स उसने श्रीचन्द्र क चिन्तित वदन की ओर देखा, और वाली -एक उपाय है, करोगे? श्रीचन्द्र न सीध होकर बैठते हुए पूज-वह क्या ? विधवा-विवाह-सभा म चलकर हम लोग -कहते-कहत चन्दा रुक गई, क्याकि, श्रीचन्द्र मुस्करान लगा था । उसो हँसी म एक मार्मिक व्यग्य था । चन्दा तिलमिला उठी। उसने कहा--तुम्हारा सब प्रेम झूठा था । थीचन्द्र न पूरे व्यवसायी क ढग स कहा–बात क्या ह, मैन ता कुछ कहा भी नही और तुम लगी बिगडन । चन्दा-मैं तुम्हारी हंसी का अर्थ समझती हूँ। थीचन्द्र-कदापि नही । स्त्रियाँ प्राय तुनक जान का कारण सब बातो म ११८ प्रसाद वाङ्मय