पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१९१

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मुझे इसकी आशका पहले से थी। आपने मुझे शरण दी है। इसलिए गाला वो मैं प्रतारित नही कर सकता । क्योकि, मेरे हृदय मे दाम्पत्य जीवन की सुखसाधना की सामग्री वची न रही । तिसपर भी आप जानते है कि मैं एक सन्दिग्ध हत्यारा मनुष्य हूँ | -नये ने इन बातो को कहकर जैसे एक बोझ उतार फेकने की सास ली हो। वदन निरुपाय और हताश हो गया । गाला जैसे इस विवाद से एक अपरिचित असमजस म पड गई। उसका दम घुटने लगा। लज्जा, क्षोभ और अपनी दयनीय दशा स उस अपने स्त्री होन का ज्ञान अधिक वेग से धक्के देने लगा। वह उसी क्षण नये से अपना सम्बन्ध हो जाना, जैसे अत्यन्त आवश्यक समझने लगी थी। फिर भी यह उपक्षा वह सह न सकी। उसने रोकर बदन से कहाआप मुझे अपमानित कर रहे है, मैं अपने यहा पले हुए मनुष्य से कभी ब्याह न करूँगी । यह तो क्या, मैन अभो ब्याह करने का विचार भी नही किया है । मेरा उद्देश्य है-पढना और पढाना । मै निश्चय कर चुकी हूँ कि मैं किसी वानिकाविद्यालय में पढाऊंगी। एक क्षणभर के लिए वदन के मुंह पर भीपण भाव नाच उठा । वह दुन्ति मनुष्य हथकडियो से जकडे हुए बन्दी के समान किटकिटा कर बाला-तो आज स मेरा-तेरा कोई सम्बन्ध नही और एक ओर चल पड़ा। नय चुपचाप पश्चिम के आरक्तिम आकाश की ओर देखन लगा । गाला रोप और क्षोभ स फूल रही थी, अपमान न उसके हृदय को क्षत-विक्षत कर दिया था। ___यौवन से भरे हृदय की महिमामयी कल्पना, गोधूली की धूप म बिखरने लगी। नये अपराधी की तरह इतना भी साहम न कर सका कि गाला को कुछ सान्त्वना दता । वह भी उठा और एव ओर चला गया। ककाल . १६३