पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/१९३

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T चतर्थ खण्ड M वह दरिद्रता और अभाव क गार्हस्थ्य जीवन की कटुता में दुलारा गया था। उसको मा चाहती थी कि वह अपन हाथ दो रोटी कमा लेन के योग्य बन जाय, इसलिए वह बार-बार झिडकी मुनता । जव क्रोध से उसके आँसू निकलते और जब उह अधरा से पोछ लना चाहिए था तब भी व रूप कपोलो पर आप-ही आप मूखकर एक मिलन-चिह्न छोड जाते थे। ___कभी वह पढन के लिए पिटता कभी काम सीखन के लिए डाँटा जाता यही थी उसकी दिनचर्या । फिर वह चिडचिडे स्वभाव का क्या न हो जाता । वह क्रोधी था तो भी उसके मन म स्नेह था, प्रेम था और था नैसर्गिक आनन्द-~शैशव का उल्लास, रा लन पर भी जी घोलकर हंस लेना, पढन पर खलन लगना बस्ता खुलने के लिए सदैव प्रस्तुत रहता । पुस्तके गिरन के लिए निकल पडती थी । टोपी असावधानी से टेढी और कुरते का बटन खुला हुआ । आँखा म मूखते हुए आंसू और अघर पर मुस्कराहट । म उसकी गाडी चल रही था'। वह एक पहिया दुलका रहा था। उस चलाकर उल्लास स बाल उठा-हटा सामने से, गाडी जाती है। सामन स आती हुई युवती पगली न उस गाडी का उठा लिया । बालक के निर्दोष विनोद में बाधा पढी। वह सहमकर उस पगला की आर दखन लगा । निष्पल काध का परिणाम होता है रा दना । बालक रान लगा। म्यूनिसिपल स्कूल भा पास न था, जिसकी ' अक्षा म वह पढ़ता था। काई सहायकन पहुँच सका। पगला न उसे रोते देखा, वह जैसे अपनी भूत समझ गई बोलीमी! अमका न बलाआग, आ-आं,-मैं भी रान लगूगी, आ-t-t! बालक हंस पडा । वह उस गाद मलकर शिक्षाडन सगी । अबकी वह फिर घबराया। उसन रान क लिए मुह बनाया हो या कि पगली न उस गोद से उतार दिया और वह यरवडान लगा--राम, कृष्ण और दुढ सभी ता पृथ्वा पर लाटत ! 7 ककाल १६५