पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२०६

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३ एक दिन मवेरे की गाडी से वृन्दावन के स्टेशन पर नन्दो और घण्टी उतरी। बाथम स्टेशन के समीप ही, सडक पर ईसाई-धर्म पर व्याख्यान दे रहा था यह देवमन्दिरो की यात्राएं तुम्हारे मन मे क्या भाव लाती हूँ-पाप की या पुण्य की ? तुम जब पापा के वोझ से लदकर, एक मन्दिर की दीवार से टिककर लम्बी साँस खीचते हुए सोचोगे कि मैं इससे छू जाने पर पवित्र हो गया, तो तुम्हारे में फिर से पाप करने की प्रेरणा बढेगी । यह विश्वास कि देवमन्दिर मुझे पाप से मुक्त कर देगे, भ्रम है । ____महसा मुनने वालो म से मगल ने कहा-ईसाई | तुम जो कह रहे हा, यदि वही ठोक है, तो इस भाव के प्रचार का सबसे बडा दायित्व तुम लोगो पर है, जो कहते हैं कि पश्चाताप करा, तुम पवित्र हो जाओगे । भाई, हम लोग ता इस सम्बन्ध मे ईश्वर को भी इस झझट से दूर रखना चाहते है 'जो जस करे सो तस फल चाखा !' सुननेवालो ने ताली पीट दी । बाथम एक घोर सैनिक की भांति प्रत्यावर्तन कर गया। वह भीड मे से निकलकर अभी स्टेशन की ओर चला था कि सिर पर गठरो लिये हुए नन्दो के पीछे घण्टी जाती हुई दिखाई पडी। वह उत्तेजित होकर लपका, उसने पुकारा,---घण्टी । ___घण्टी के हृदय में सनसनी दौड गई। उसने नन्दो का कन्धा पकड लिया। धर्म का व्याख्याता ईसाई, पशु के फदे म अपना गला फासकर उछलने लगा। उसने कहा-धण्टी । चलो, हम तुमको खाज कर लाचार हा गय- आह डालिग। भयभीत घण्टी सिकुडी जाती थी। नन्दो ने डपटकर कहा-तू कौन हे रे । क्या सरकारी राज नही रहा । आगे बढ़ा, तो ऐसा झापड लगेगा कि तेरा टोप उड जायगा । १७८ प्रसाद वाङ्मय