पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२२३

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कम्बल ओढे, यमुना की ओर मुंह किये बैठा है जैसे किसी यागी की अचल समाधि लगी हो । ___ सरला कहने लगी है यमुना माता | मगल का कल्याण करो और उसे जीवित करके गाला को भी प्राणदान दो। माता । आज की रात बडी भयानक है -दुहाई भगवान् की । वह बैठा हुआ कम्बलवाला विचलित हो उठा। उसने बडे गम्भीर स्वर से पूछा--क्या मगलदेव रुग्ण है ? प्रार्थिनी और व्याकुल सरला ने कहा हा महाराज | यह किसी का बच्चा है, उसक स्नेह का धन है, उसी की कल्याण-कामना कर रही हूँ। और तुम्हारा नाम सरला है ? तुम ईसाई के घर पहले रहती थी न | -धीरे स्वर से प्रश्न हुआ। हा योगिराज । आप तो अन्तयामी है। उस व्यक्ति न टटोलवर काई वस्तु निकालकर सरला की आर फेक दी। सरला ने देखा, वह एक यत्र है । उसने कहा-बडी दया हुई महाराज | तो इसे ले जाकर बाध दूगी न । वह फिर कुछ न बोला, जैसे समाधि लग गई हो । सरला न अधिक छेदना उचित न समझा । मन ही-मन नमस्कार करती हुई, प्रसनता से आश्रम की ओर लौट पड़ी। वह अपनी कोठरी म आकर उस यत्र का धागे म पिराकर, मगल के प्रकोष्ठ के पास गई । उसने सुना, कोई कह रहा है-बहन गाला । तुम थक गई होगी, लाआ मैं कुछ समय सहायता कर दूं। उत्तर मिला-नही यमुना बहिन । मैं तो अभी बैठी हूँ, फिर आवश्यकता हागी, तो बुलाऊंगी। ____ एक स्त्री लोटकर निकल गई । सरला भीतर घुसी। उसन वह यत्र मगल के गले म बांध दिया और मन ही मन भगवान् से प्रार्थना की । वही बैठी रही। दोना ने रात भर वडे यत्न से सवा की। प्रमात होन लगा। बडे सन्दह से सरला ने उस प्रभात के आलोक को दखा। दीप को ज्याति मलिन हो चली। रोगी इस समय निद्रित था। जब प्रकाश उस कोठरी में घुस आया, तब गाला, सरला और मगल तीनो नीद म सो रहे थे। जब कथा समाप्त करके सब लोगो के चले जाने पर गोस्वामीजी उठकर फफाल १६५