पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२३६

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मेरा इतिहास में लिखना नही चाहता। जीवन को कौन-सी घटना प्रधान है, और वाकी सब पोछे-पीछे चलने वाली अनुचरी हैं ? बुद्धि बरावर उमे चेतना की लम्बी पति म पहचानने में असमर्थ है। कौन जानता है कि ईश्वर को खोजते-खोजत कब, किस पिशाच मिल जाता है । __जगत् की एक जटिल समस्या है--स्पी-पुरुष का स्निग्ध मिलन । यदि तुम और श्रीचन्द्र एक-मन-प्राण होकर निभा सकते ? किन्तु वह असम्भव था। इसके लिए ममाज न भिन्न-भिन्न समय और देशा म अनव प्रकार की परीक्षाएं को, विन्तु वह सफल न हो सका । रुचि मानव-प्रकृति, इतनी विभिन्न है कि वैसा युग्म-मिलन विरला होता है । मेरा विश्वास है कि वह कदापि सफल न होगा। स्वतन्त्र चुनाव स्वयवरा, यह सव सहायता नही दे सक्त । इमका उपाय एकमान समझौता है, वही ब्याह है, परन्तु तुम लोग उसे विफल बना ही रह थे कि में बीच म कूद पडा । मैं कहेंगा कि तुम लोग उस व्यर्थ करना चाहत थ । किशारी । इतना ता निस्सन्दह है कि मैं तुमका पिशाच मिला-तुम्हार आनन्दमय जीवन का नष्ट कर दने वाला, भारतवप का एक साधु नामधारी हा। ---यह कितनी लज्जा की बात है। मरे पास शास्त्रा का तर्क था, मैन अपने कामो का समर्थन दिया, पर तुम थी जसहाय जवला-~आह, मैन क्या किया । और सबस भयानक बात तो यह थी कि मैं ता अपन विचारा म पवित्र था। पवित्र हान के लिए भर पास एक मिसान्त था। मैं समझता था कि, धर्म ग, ईश्वर से, कवल हृदय का सम्बन्ध है, कुछ क्षणो तक उसकी मानसिर उपासना कर लन स यह मिल जाता है। इन्द्रिया म, वासनाआ म उनका कोई सम्बन्ध नही, परन्तु हृदय ना उन्ही सवदना स मुसगठित है। रिशारी, नुम भी मरे ही पथ पर चलती रही हा पर रागी शरीर म म्वम्प हस्य यहाँ स आवेगा? काला रत्ता र भगवान का उग्ग्वल रूप कौन देय मरगा? तुमया म्मरण होगा कि मैंन एक दिन यमुना नाम मा दासा का तुम्हार यहाँ दवगृह म जान के लिए रार दिया धाउन गिना जान ममझे अपगधिनी मानकर । वाह र दम्भ। मैं माचता हूँ कि अपराध परन म भा में उता पतित नहीं था, जितना दूसरो का बिना जान-मम छाटा, नाम, अपराधी मान लेन म । पुण्य या मेरडा मन का धातु-निर्मित घण्टा बजार जानोग अपनी बार मसार का ध्यान आपित कर सकन है, य, यह नहीं जानत मि यदन ममाप वपन हदय तक वह भाषण शन्द नहीं पहुँचना । २०८ प्रसाद याडमय