पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२४३

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कभी नहीं दिया था, तब भी तुमन मुझे कितना वचाया-कितना रक्षा को । ह मरे दैव । मेरा नमस्कार ग्रहण करा, इस नास्तिक का समर्पण स्वीकार करो । अनाथो के नाथ । तुम्हारी जय हो ! उसी क्षण उसके हृदय को गति बन्द हो गई। आ3 बजे भारत-सघ का प्रदर्शन निकलनवाला था । दशाश्वमध घाट पर उसका प्रचार होगा। सब जगह वढी भीड है । आग स्त्रिया का दल था, जो वडा ही करुण-सगीत गाता जा रहा था। पीछ कुछ स्वयसवका की श्रेणी थी। स्त्रिया के आगे-आगे घण्टी और लतिका थी । जहाँ से दशाश्वमध के दो मार्ग अलग हुए है, वहाँ आकर वे लोग अलग-अलग हाकर प्रचार करन लग। घण्टी उस भिखमगावाल पीपल के पास खडी होकर बोल रही थी। उसके मुख पर शान्ति थी वाणी म स्निग्धता थी। वह कह रही थी-ससार का इतनी आवश्यकता किसी अन्य वस्तु की नहीं, जितनी सेवा की। देखो-कितन अनाथ यहा अन-वस्त्र विहीन, बिना किसी औपधि-उपचार क मर रह हैं। है पुण्यार्थियो । इन्हें न भूलो, भगवान् अभिनय करके इसम पडे हैं, वह तुम्हारी परीक्षा ल रह है । इतन इश्वर के मन्दिर नष्ट हो रहे है धार्मिको । अब भी चता । सहसा उसकी वाणी बन्द हो गई । उसन स्थिर दृष्टि से एक पडे हुए कंगले का दया, वह बाल उठी-~दखा वह वचारा अनाहार से मर गया-सा मालूम पडता है। इनका सस्वार हो जायगा । हा जायगा | आप इसको चिन्ता न कीजिए, अपनी अमृतवाणी वरसाइए । जनता म कोलाहल होन लगा किन्तु वह आगे बढी, भीड भी उधर ही जान लगी । पीपल क पास सभाटा हा चला। माहन अपनी धाय क सग मला दखन आया था। वह मान-मन्दिरवाली गली के कान पर खडा था। उसने धाय स कहा-दाई, मुझे वहाँ ल चलकर मला दिखाओ, चना मेरी अच्छी दाई। यमुना ने कहा~मरे लाल | बडी भीड है, वहां क्या है जा दयोग । मोहन न कहा-फिर हम तुमका पीटग) तब तुम पाजी लडके समझे जाओगे, जो देवगा वहीं कहगा कि यह लडका अपनी दाई को पौटता है | --चुम्बन लकर यमुना न हंसत हुए कहा । अकस्मात् उसको दृष्टि विजय के शव पर पडी । वह घबराई कि क्या करे। पास हा श्रीचन्द्र भी टहल रह थे । उसन माहन को उनक पास पहुँचात हुए हाथ जाडकर कहा-बाबूजी, मुझे दस रूपय दीजिए । ककाल २१५