पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२५३

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नही जान-बूझ कर किसी उपकार-अपकार के चक्र मे न पडना ही अच्छा है। बञ्जो 1 पल भर को भावुकता मनुष्य के जीवन म कहाँ-से-कहाँ खीच ले जाती है, तू अभी नहीं जानती । बैठ, ऐसी ही भावुकता को लेकर भुने जो कुछ भोगना पडा है, वही सुनाने के लिए तो मैं तुये खाज रहा था। बापू क्या है रे । वैठती क्यो नही ? वे लोग यहाँ या गये हैं ओहो । तू बडी पुण्यात्मा है...ता फिर लिवा ही आई है, तो उन्हें विठा दे छप्पर मे-और दूसरी जगह हो कौन है ? और बा। अतिथि को बिठा देने से ही नही काम चल जाता । दो-चार टिक्कर सेंकने की भी समझी ? ___नहो-नहीं, इसको आवश्यकता नही-कहते हुए इन्द्रदेव वुड्ढे के सामने आ गये । बुड्ढे ने धुंघले प्रकाश म देखा-पूरा साहबी ठाट । उसने कहा-आप साहब यहाँ तुम घबराओ मत, हम लोगो को छावनी तक पहुंच जाने पर किसो वात की असुविधा न रहेगी । चौवेजी को चोट आ गई है, वह सवारी न मिलने पर रात भर, यहाँ पडे रहेगे । सवेरे देखा जायगा । छावनी को पगडडी पा जाने पर हम लोग स्वय चल जायगे। कोई इन्द्रदेव को रोककर बुड्ढे ने कहा-आप धामपुर को छावनी पर जाना चाहते हैं ? जमीदार के मेहमान हैं न ? बञ्जो । मधवा को बुला दे, नही तू हो इन लोगो को बनजरिया के बाहर उत्तर वाली पगडडी पर पहुँचा दे । मधुवा ।। ओ रे मधुवा --चौवेजी को रहने दीजिए, कोई चिन्ता नही। बञ्जो न कहा-रहने दो बापू । मैं हो जाती हूँ। शैला ने चौवेजी से कहा-तो आप यही रहिए, मैं जाकर सवारी भेजती रात को झझट बढान की आवश्यकता नहीं, बटुए में जलपान का सामान है कम्बल भी है। मैं इसी जगह रात भर मे इसे सेक सांक कर ठोक कर लूगा। आप लोग जाइए। -चौवे ने कहा। इन्द्रदेव ने पुकारा-शेला । आओ, हम लोग चले। शैला उसी झोपड़ी में आई। वही से बाहर निरलने का पथ था। बजो पीछे दोनो झोपडी से निकले। लेटे हुए वुड्ढे ने देखा~-इतनी गोरी, इतनी सुन्दर, लक्ष्मी-सा स्त्री इस जगल-उजाड मे कहाँ । फिर सोचने लगा-चलो,दो तो गये। यदि वे भी यही रहते, तितलो २२५ १५