पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/२६६

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है। माता श्यामदुलारी भो उसके अनुशासन को मानती हैं और भीतर ही भीतर दबती भी हैं। माधुरी का पति उसकी खोज-खबर नही लेता। उसे लेने की आवश्यकता ही क्या ? माधुरी धनी घर की लाडली वेटी है। इसलिए बावू श्यामलाल को इस अवसर से लाभ उठाने की पूरी सुविधा है। श्यामदुलारी, बेटी और दामाद दोनो को प्रसन रखने की चेष्टा में लगी रहती हैं । बहुत बुलाने पर कभी साल भर में बाबू श्यामलाल कलकत्ता से दोतीन दिन के लिए चले जाते हैं । उनका व्यवसाय न नष्ट हो जाय, इसलिए जल्द चले जाते है अर्थात् रेस की टीप, बगीचो के जुए, स्टीमरो की पार्टियाऔर भी कितन ही ऐसे काम है, जिनमे चूक जाने स वडी हानि उठान की सभावना है। माधुरी शासन करने की क्षमता रखती है। भाई इन्द्रदेव पढ़ते थे, इसलिए माता को रुग्णावस्था म घर-गृहस्थी का वोझ दूसरा कोन सम्हालता? माधुरी की अभिभावकता मे माता श्यामदुलारी सोती है--सपना देखती है । इसलिए माधुरी भी साथ ही आई हैं। चौकी पर मोटे-स गड़े पर तकिया सहारे बैठी वह कुछ हिसाब देख रही थी। पेट्रोल-लैम्म के तीव्र प्रकाश म उसकी उठी हुई नाक की छाया दीवार पर बहुत लम्बी-सी दिखाई पड़ती है। मलिया बडी नटखट छाकरी है । वह पान का डब्बा लिये हुए, उस छाया को देखकर, जोर से हंसना चाहती है, पर माधुरी के डर से अपने ओठो को दांत से दबाये चुपचाप यही है । मिस अनवरी को छाया से वह चौंक उठी। उसने चुलबुलेपन स कहा- मेम साहब, सलाम ! माधुरी न सिर उठाकर देखा और वहा-आइए, हम लोग बडी देर से आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं । मां का दर्द तो बहुत बढ गया है। माधुरी के पास ही बैठते हुए अनवरी न-बीवी, तुमका देखन के लिए जी ललचाया रहता है, मां को तो दखूगी ही-कहकर उसके हाथो का दबा दिया। माधुरी ने शेपकर कहा-आहा ! तुम तो मम और साहब दाना हो हा न ? अच्छा, यह तो बताओ, तुम्हारे ठहरने का क्या प्रबन्ध करूं ? आज रात को तो मोटर से शहर सौट जान न दूंगी। अभी मां पूजा कर रही है, एक पटे मे खाली हागी, फिर घटा उनका दखने म लग जायगा ।।बजेगा दा और जाना है वोस मोल ! आज रात तो तुमको रहना ही होगा। अनवरी ने मुस्कराते हुए कहा-सो तो वीची, तुम्हारा भाभी न मुझे न्याता ही दिया है २३८ प्रसाद वाङ्मय