पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३१०

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थी। दिन-दिन वही बढ़न लगी। स्त्री का हृदय था, एक दुलार का प्रत्याशी, उसम कोई मलिनता न थी। ___चौवे भी अज्ञात भाव स उसी का अनुकरण कर रहे थे। पर वह कुछ जैस अधकार में चल रह थे। राजकुमारी फिर भी सावधान थी। एक दिन सहसा नियमित गालियां सुनन क समय जब चौब का नाम भी उसभ मिलकर मीपण अट्टहास कर उठा, तब राजकुमारी अपने मन म न जान क्यो वास्तविक्ता को खोजन लगी। वह जैसे अपमान की ठोकर से अभिभूत होकर उसी ओर पूर्ण वेग से दौडने के लिए प्रस्तुत हुई, वदला लेने के लिए और अपनी असहाय अवस्था का अवलम्ब खोजने के लिए। किन्तु वह पागलपन क्षणिक हा रहा । उसकी खीझ फल नही पा सकी। सहसा मधुवन को सम्हालने के लिए उस शेरकोट चले आना पडा । वह भयानक आँधी क्षितिज मे ही दिखलाई देकर रुक गई । चौबे नौकरी करन लग राजा साहब के यहाँ, और राजकुमारी शेरकोट के झाड़ और दीय म लगी-यह घटना वह सभवत भूल गई थी, किन्तु आज सहसा विस्मृत चित्र सामन आ गया। राजकुमारी का मन अस्थिर हो गया। वह गगाजी क नहान के घाट तक बडी दर से पहुंची। शैला और तितली नहाकर ऊपर खडी थी। बावा रामनाथ अभी सध्या कर रहे थे । राजकुमारी को देखते ही तितली न नमस्कार किया और शैला स कहा -आप ही हैं, जिनकी वात वावाजी कर रहे थे ? शैला न कहा-अच्छा । आप ही मधुबन को बहिन है ? जी। मैं मधुबन के साथ पढ़ती हूँ। आप मेरी भी बहन हुई न !-शैला ने सरल प्रसन्नता से कहा। राजकुमारी न मेम के इस व्यवहार से चकित होकर कहा—मै आपकी बहन होन योग्य हूँ ? यह आपकी बडाई है। क्यो नही बहन | तुम ऐसा क्यो सोचती हो आओ, इस जगह बैठ जाय । अच्छा होगा कि तुम भी स्नान कर ला, तब हम लोग साथ ही चले। नहीं, आपको विलम्ब होगा। कहकर राजकुमारी विशाल वृक्ष के नीचे पडे हुए पत्थर की ओर बढी। शैला और तितली भी उसी पर जाकर बैठी। राजकुमारी का हृदय स्निग्ध हो रहा था। उसने देखा, तितली अब वह चचल लडकी न रही, जो पहले मधुबन के साथ खेलने आया करती थी। उसकी २५२ प्रसाव वाङ्मय