पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/३१८

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उजली धूप वनजरिया के चारो और, उसके छोटे-बडे पोधो पर, फिसल रही थी । बभी सवेरा था, शरीर म उस कोमल धूप की तीव्र अनुभूति करती हुई तितली, अपन गोभी के छोटे-से यत के पास, सिरिस के नीचे बैठी थी। झाडियो पर से जोस की बूदें गिरने-गिरन को हो रही थी। समीर म शीतलता थी। उसकी आँखो म विश्वास कुतूहल वना हुआ संसार का सुन्दर चित्र देख रहा था। किसी ने पुकारा-तितली ! उसने घूमकर देवा, शैला अपनी रेशमी साडी का अचल हाथ मे लिए घड़ी है। तितली की प्रसन्नता चचल हो उठी । वही खडी होकर उसने कहा-आओ वहन 1 देखो न | मेरी गोभी म फूल बैठने लगे हैं। शैला हंसती हुई पास आकर देखने लगी। श्याम-हरित पत्रो म नन्हे-नन्हे उजले-उजले फूल । उसने कहा- वाह ! लो, तुम भी इसी तरह फूलो-फलो। आशीर्वाद की कृतज्ञता में सिर झुकाकर तितली ने कहा-कितना प्यार करती हो मुझे । तुमको जो देखेगा, वही प्यार करेगा। अच्छा । उसने अप्रतिभ होकर कहा । चलो, आज पाठ कब होगा? अभी तो मधुबन भी नही दिखाई पड़ा। मै आज न पढ़ गी। क्यो? यो ही । और भी कई काम करना है । शैला ने कहा- अच्छा, मैं भी आज न पढ़गी--बाबाजी स मिल कर चली जाऊंगी। रामनाथ अभी उपासना करके अपने आसन पर बैठे थे। शैला उनके पास चटाई पर जाकर बैठ गई। रामनाथ ने पूछा-आज पाठ न होगा क्या ? मधुवन भी नही दिखाई पड़ रहा है, और तितली भी नही । २६० प्रसाद वाङ्मय