पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४०४

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और बिगडते रहेगे। मैं सबको प्रसन्न और सन्तुष्ट रखन के लिए अपने-आपका जकडकर रखना नहीं चाहता । जो होना हो वह हो ले । मैने जो अच्छा समझा, वही किया । अच्छा, तो अब अपनी कहा । क्या निश्चय हुआ ? मैं कल जाना चाहती थी। पर अब तो कुछ दिनो क लिए रुकना पडा। क्यो-कोई आवश्यक काम आ पड़ा क्या ? हों, पहले मैं तुम्हारे त्याग की ही परीक्षा करूंगी, फिर दूसरो के किवाड खटखटाऊंगी। शैला । मुनू भी। मुझे क्या परीक्षा देनी है । तितली बडी विपत्ति म पडकर सहायता के लिए आई है। उसका शेरकाट वेदखल हो रहा है । बनजरिया पर भी लगान की डिग्री हो गई है। उधर आपक तहसीलदार ने एक फौजदारी करवा दी है, जिसमे मधुबन पर पुलिस न वारण्ट निकलवाया है । और भी, बिहारीजी के महन्त ने डाके का मुकदमा भी उस पर चलाया है । मधुबन का पता नही । तितली का कोई सहायक नही । उसके ब्याह के बाद ही गाव वालो का एक विरोधी-दल इन लोगो के विनाश का उपाय साच रहा था। हम लोगो के हटत ही यह सव हा गया। क्या उसका तुम कानूनी सहायता दे सकोगे? एक सास म यह सव कहकर शैला उत्सुकता से उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी। इन्द्रदेव चुप रहे । फिर धीरे-धीरे उन्होने कहा-~-मैं अब उस गाव के सम्बन्ध में कुछ करना नही चाहता | शैला । तुम जानती हो कि इसका क्या फल होगा? ____ मै सब जानती हूँ। पर तुम अभी कह रह थे कि मैं जाकर वहा सुधार का काम अधिक वेग स आरम्भ करूं । यदि मरे कुछ समर्थको का इस तरह दमन हो जायगा, तो मैं क्या कर सकूगी ? अभी तो चकबन्दी के लिए कितने झगडे उठाये जायगे । ता मैं समझ लू कि तुम मुझे कानूनी सहायता भी न दोगे । ___ मैं तो श्रमजीवी हूँ शैला । मुझे जा भी फीस देगा, उसी का काम करने के लिए मुझे परिश्रम करना पड़ेगा। तुमको फीस चाहिए ! क्या कहत हा इन्द्रदेव । इसालिए तितली की महायता करन म तुम आनाकानी कर रहे हो न? -शैला की वाणी म वेदना थी। ___ अपनी जीविका क लिए मै अब दूसरा काइ काम बाज लू । फिर और लागो का काम विना कुछ लिए ही कर दिया करूंगा। तब तक के लिए क्या ३८० प्रसाद वाङ्मय