पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४२५

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नील-कोठी मे इधर कई दिनो से भीड लगी रहती है। शैला की तत्परता से चकवन्दी का काम बहुत रुकावटा मे भी चलने लगा। महंगू इस वदले के लिए प्रस्तुत न था। उसकी समझ में यह वात न आती थी। उसके कई खेत बहुत ही उपजाऊ थे। रामजस का घेत उसके घर से दूर था, पर वह तीन फसल उसम काटता था । उसको बदलना पडेगा। यह असम्भव है । वह लाठी टेकता हुआ भीड मे घुसा। ___वाट्सन के साथ बैठी हुई शैला मेज पर फैले गाव के नक्शे को देख रही थी। किसानो का झुण्ड सामने खड़ा था । महंगू न कहा-दुहाई सरकार मर जायगे। शैला ने चौंककर उसकी ओर देखा। मेरा खेत । उसी से बान-बच्चो की रोटी चलती है। उस टुकडे को मैं न बदलूगा। __महंग की आंखो म औमू तो अब बहुत शीघ्र यो ही आते थे । वृद्धावस्था म मोह और भी प्रवल हो जाता है। आज जैसे आँसू की धारा ही नही रुकती थी। शैला ने वाट्सन की ओर देखा। उस देखने म एक प्रश्न या । किन्तु वाट्सन न कहा-नही, तुम्हारा वह खेत तुम्हारी चरनी और कोल्हू से बहुत दूर है । उसको तो तुम्हे छोडना ही पडेगा । तुम अपन समीप का एक टुकड़ा क्यो नही पसन्द करते। वाट्सन ने नक्शे पर उंगली रखी। शैला चुप रही । इतने म तितली एस डाटा-सा वच्चा गोद मे लिए यही आई । उसे देखते ही दूसरी कुर्सी पर बैठने का सकेत करते हुए शैला ने कहा-वाट्सन ! यही मेरी बहन "तिवली है। जिसके लिए मैंने तुमसे कहा था । कन्या-पाठशाला की यही अध्यापिका है । बीस लडकियां तो उसम बार्ड को हिन्दी-परीक्षा के लिए इस साल प्रस्तुत हो रही हैं और छोटी-छोटी क्यामा म कुल मिलाकर पालीस होगी। तितली : ४०१