पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/४२८

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आगे वह भी कुछ न बोल सकी, उसकी आँखो से आँसू बहन लगे। शेला ने बात का ढग बदलने के लिए कहा—अच्छा, तुमसे एक वात पूछती हूँ। क्या ? यही कि उस दिन तुम बिना कहे-सुन क्या चली आई। इन्द्रदेव ने तो तुम्हारी सहायता करने के लिए कहा था न? ___ मैं यह सब समझती हूँ। वे कुछ करते भी, इसका मुझे विश्वास है, परन्तु मैंने यही समझा कि मुझे दूसरो के महत्त्व-प्रदर्शन के सामने अपनी लघुता न दिखानी चाहिए । मैं भाग्य के विधान से पीसी जा रही हूँ। फिर उसमे तुमको, तुम्हारे सुख से घसीट कर, क्या अपने दुख का दृश्य देखने के लिए बाध्य करूं? मुझे अपनी शक्तियो पर अवलम्ब करके भयानक ससार स लडना अच्छा लगा। जितनी सुविधा उसने दी है, उसी की सीमा मे मैं लड़गी, अपने अस्तित्व के लिए । तुमको साल भर पर अब यहाँ आने का अवसर मिला है । तो मेरे समीप जो है उसी को न मैं पकड सर्केगी। वह बनजरिया । वे ही थोडे-से वृक्ष और साधारण-सी खेती । तव मुझे यहां पाठशाला चलानी पड़ी । जानती हो, आज मेरे परिवार में कितने प्राणी हैं । दा को तुम यही देख रही हो । राजो, मलिया और तीन छोटी-छोटी अनाथ लडकियां, जिनमे कोई भी छ महीने से अधिक बडी नहीं है । और अभी जेल से छूटकर आया हुआ रामजस, जिसके लिए न एक वित्ता भूमि है और न एक दाना अन्न । तीन छोटी-छोटो लडकिया हैं ? वे कहा से आ गई ? शैला ने आश्चर्य से पूछा। ससार भर मे परम अछूत । समाज की निर्दय महत्ता के काल्पनिक दम्भ का निदर्शन | छिपाकर उत्पन्न किये जाने योग्य सृष्टि के बहुमूल्य प्राणी, जिन्हे उनकी माताएं भी छूने मे पाप समझती हैं । व्यभिचार को सन्तान । __ शैला की आँखे जैसे बढ गई। उसन तितली का हाथ पकड कर कहा-बहन । तुम यथार्थ मे बाबाजी की बेटी हो । तुम्हारा काम प्रशसनीय है, यहाँ वाले क्या तुम्हारे काम से प्रसन्न है ? हा या न हो, मुझे इसकी चिन्ता नही । मैंने अपनी पाठशाला चलाने का दृढ निश्चय किया है। कुछ लोगो ने इन लडकियो के रख लेने पर प्रवाद फैलरया । परन्तु वे इसमें असफल रहे । मैं तो कहती हूँ, कि यदि सब लडकियां पढना बन्द कर दे, तो मैं साल भर म ही एसे कितनी ही छोटी-वडी अनाथ लडकियां एकत्र कर लूंगी, जिनसे मेरी पाठशाला और खेती-बारी बरावर चलती रहेगो । मैं इस कन्या-गुरुकुल बना दूंगी। तितली का मुंह उत्साह से दमकने लगा, और शैला विमुग्ध होकर उसकी मन ४०४: प्रसाद वाङ्मय