पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/५२१

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"किन्तु सेनापति को आज्ञा क्या भूल गये? ऐसे बेकार पाखडियों को अन्न देने के लिए उन्होंने वर्जित किया है।" चन्दन ने कहा। "हाँ, उनका उद्देश्य है कि भोजन न पाने से ये सव स्वय नगर के वाहर हो जायगे । फिर यदि नगर का अवरोध भी होगा तो वरसो तक पाटलिपुत्र का कोई विजय नही कर मकता।" धनदत न ऐसे स्वर में कहा कि मणिमाला सुन और उसके साथ बात करने में सम्मिलित हो जाय परन्तु वह हिलो भी नही। धनदत्त मणिमाला के समीप होता जा रहा था, परन्तु उधर न देखते हुए मणिमाला सोच रही थी-"इतनी बडी सम्पत्ति और युवती स्त्री की व्यवस्था जो पुरुष स्वय नहीं करता और भूल हो जान पर उसी को तिरस्कृत करता है, वह भी क्या बुद्धिमान है । जैसे बहुत-से निठन्ले अन्न-वस्त्र पाते हैं, उसी तरह क्या मैं भी हैं। मैं भी यदि प्राण वचाने के लिए भयभीत होकर कही चली ही गई, तो इसमें कौन-सा अधर्म हो गया। उस दिन से मुझसे वोलते भी नही ।" उधर चन्दन ने कहा "और भी सुनिये न । वह जो पडास म मालती देवी का गृह है, जिसमे नित्य संघ का निमत्रण होता था..." "तो वहाँ क्या हो गया ?" उत्सुकता से धनदत्त न पूछा। "पति और पत्नी मे झगडा हो रहा है, मालती देवी कहती है, मै बिना अतिथिया को खिलाये भोजन नही करूंगी।" तो मर जाय । स्त्रियो को जैसे समय-असमय का विचार ही नही है । कब क्या करना चाहिए, यही जो उनकी बुद्धि मे आ जाता । चन्दन । कहाँ तो नगर भर मे आतक छाया है, युद्ध की विभीपिका कव क्या होगा, कोई नही जानता। फिर भी वह तो अपने मन की करेंगी ही । शील, कुल और विनय इनके हठ मे जैसे कपास की तरह आँधी में उड जाते हैं।" धनदत्त ने कनखिया से देखा, जैसे आघात ठीक हुआ हो। "इसमे कुल, शील और विनय के उड जाने का प्रसग तो नही आता।" चन्दन ने कहा। "तुम क्या जानो, कुलवती गृहिणो की कर्तव्य-सीमा कितनी है ? अरे जिसमे धैर्य नही, सहिष्णुता नही, वह भी शील की रक्षा कर सकेगी? सबको खिलापिलाकर जो स्वय यज्ञशिष्ट अन्न खाती हुई, उपालम्भ न देकर प्रसन्न रहती है वही गृहिणी है, अनपूर्णा है । बाधा, विघ्न, रोग, शोक, आपत्ति, सम्पत्ति सब में अटल अपने सब अधिकार का उपभोग करने वाली ऐसी स्त्री दुर्लभ है चदन !" "आप क्या किसी स्मृतिग्रन्थ का पारायण कर रहे हैं? तो मुझे आज्ञा दीजिए. इरारती : ५०३