पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/६२

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प्रभात हुआ, वृक्षो के अक मे पक्षियों का कलरव होने लगा। मगल की आँखे खुली, जैसे उसने रातभर एक मनोहर सपना देखा हो । वह तारा को सोई छोडकर बाहर निकल आया, टहलने लगा। उत्माह से उसके चरण नृत्य कर रहे थे । बडी उत्तेजित अवस्था में टहल रहा था । टहलत-टहलत एक बार अपनी कोठरी में गया । जंगले से पहली लाल किरण तारा के पोल पर पड रही थी। मगल ने उसे चूम लिया। तारा जग पडी। वह नजाती हुई मुस्कुरान नगी। दोनो का मन हलका था। उत्साह म दिन बीतने लगे । दाना व्यक्तित्व में परिवतन हो चला । अब तारा का वह नि सकोच भाव न रहा। पति-पत्नी का-मा व्यवहार होने लगा। मगल बड़े स्नेह से पूछता वह महज सकोच म उत्तर देती। मगल मन-हीमन प्रसन हाता । उसके निरा मसार पूर्ण हो गया था-कही रित्तता नही, वही अभाव नही। तारा एक दिन वैठा कमीदा काढ रही यो । बम-धम का गन्द हुआ। दोपहर था। आख उठाकर दखा-एक वालक दौडा हुआ आकर दालान म छिप गया। उपवन वे किवाड तो पुले ही थे और भी दो लडके पीछे-पीछे आय । पहना वालक सिमटकर सबकी आँखा की ओट हा जाना चाहता था। तारा कुतूहन से देखन लगी । उसन सकेत स मना किया नि बतावे न । तारा हँसने लगी। दोनो खोजनेवाल लडक ताड गय। एव ने पूछा-मच बताना रामू यहाँ आया है ? पडोस के लडक ये, ताग ने हंस दिया राम पड गया । तारा ने तीना का एक-एक मिठाइयाँ दी। खूब हंसी हाती रही। कभी-कभी कुल्लू की मां आ जाती। वह कमीदा सीखती। कभी बल्लो अपनी किताब लेकर आती, तारा उसे कुछ बताती। विदुपी मुभद्रा भी प्राय जाया करती । एक दिन मुभद्रा बैठी थी, तारा न कुछ उमस जलपान करन का अनुरोध किया। मुभद्रा ने कहा-तुम्हारा ब्याह जिम दिन हागा, उसी दिन जलपान करूंगी। और जब तक न होगा, तुम मेरे यहाँ जल न पीओगी? 'जब तक क्यो ? तुम क्या विलम्ब करती हो ? मैं ब्याह करने की आवश्यकता यदि न समझू ता? यह तो असम्भव है । बहन आवश्यकता होती ही है। मुभद्रा रुक गई। तारा के कपोन लाल हो गये। उसकी ओर कनखिया से देख रही थी। वह बोली--क्या मगलदेव ब्याह वरन पर प्रस्तुत नही होत । मैन कभी प्रस्ताव तो किया नहीं। ३२ प्रसाद वाड्मय