पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय खंड 3.djvu/६६

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लोग उसे करावेगे। हो, उसमे पूजा का टट-घट वैसा न होगा,और सव तो वैसा ही होगा। ___ठीक है-मुस्कुराती हुई चाची ने कहा-ऐस वर-वधू का ब्याह और किस रीति से होगा? क्यो । आश्चर्य मे मगल उसका मुंह देखने लगा। चाची के मुंह पर उस समय बडा विचित्र भाव था । विलास-भरी आँखें, मचलती हुई हँसो देखकर स्वय मगल को सकोच होने लगा। कुत्सित स्त्रियो के समान वह दिल्लगी के स्वर म वोली--मगल, वडा अच्छा है, व्याह जल्द कर ला, नही तो वाप बन जाने के पीछे ब्याह करना ठीक नही होगा । मगल को क्रोध और लज्जा के साथ घृणा भी हुई। चाची ने अपना अचल सम्भालते हुए तीखे कटाक्षो से मगल की ओर देखा । मगन मर्माहत होकर रह गया। वह बोला---चाची । और भी हँसती हुई चाची ने कहा-सच कहती हूँ, दो महीने से अधिक नही टले हैं। मगल सिर झुकाकर सोचने के बाद बोला-चाची, हम लोगो का सव रहस्य तुम जानती हो तो तुमसे बढ़कर हम लोगो का शुभ-चिन्तक और मित्र कौन हो सकता है, अब जैसा तुम कहो वैसा करे। चाची अपनी विजय पर प्रसन्न होकर बोली-ऐसा प्राय होता है। तारा की माँ ही कौन कही की भण्डारीजी की ब्याही धर्मपत्नी थी। मगल | तुम इसकी चिन्ता न करो, ब्याह शीघ्र कर लो, फिर कोई न वोलेगा। खोजने म ऐसो की सख्या भी ससार मे कम न होगी। चाची अपनी वक्तृता झाड रही थी। उधर मगल तारा की उत्पत्ति के सवध म विचारन लगा । अभी-अभी उस दुष्टा चाची ने एक मार्मिक चोट उसे पहुंचाई। अपनी भूल और अपने अपराध मगल का नहीं दिखाई पडे, परन्तु तारा की माता भी दुराचारिणी ।—यह बात उस खटकन लगो। वह उठकर उपवन की ओर चला गया। चाची ने बहुत चाहा कि उस फिर अपनी बाता म लगा ले, पर वह दुखी हो गया था। इतने म तारा लौट आई। बडा आग्रह दिखाते हुए चाची ने कहा-तारा, ब्याह के लिए परसो का दिन अच्छा है। और देखो, तुम नहीं जानती हो कि तुमने अपन पेट मे एक जीव और बुला लिया है, इसलिए ब्याह का हो जाना अत्यन्त आवश्यक है। तारा चाची की गम्भीर मूर्ति देखकर डर गई। वह अपने मन में साचन लगी-जैसा चाची कहती है वही ठीक है । तारा सशक हो चली। ३६ प्रसाद वाङ्मय