पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(समवेत स्वर से) जय जय विश्व के आधार । अगम महिमा सिन्धु-सी है कौन पावै पार । जो प्रसव करता जगत को, तेज का आकार । उसी के शुभ-ज्योति से हो सत्य पथ निर्धार । छुटे सब यह विश्व-वन्धन हो प्रसन्न उदार । विश्व प्राणी प्राण में हो व्याप्त विगत विकार । --जय जय विश्व के आधार ॥ (आलोक के साथ वीणा-ध्वनि । शुन शेफ का बन्धन आप-से-आप खुल जाता है, और सब शक्तिमान् होकर खड़े जाते हैं । पुष्प-वृष्टि होती है) आलोक के साथ पटाक्षेप करुणालय: ८५