पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/१३३

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राज्यश्री निपेतुरेकस्या तस्यां शरा इव लक्ष्यभुवि भूभुजां सर्वेषां दृष्टयः -हर्षचरिते इन्दु जनवरी १९१५ मे प्रथम प्रकाशन और १९१८ मे 'चित्राधार' में पुनर्मुद्रण के पश्चात स्वतंत्र पुस्तक रूप मे 'इम : काव्य का पूर्व रूप 'इन्दु' मे पहले निकला, फिर 'चित्राधार' के संग्रह मे पुनर्मुद्रित हुआ। एक प्रकार से मै इसे अपना प्रथम ऐतिहासिक रूपक समझता हूँ। उस समय यह अपूर्ण ही--सा था, इसका वर्तमान रूप कुछ परिवर्तित और परिवद्धित है।' (-लेखकीय प्राक्कथन से)