पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/२५४

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देवदत्त-अधिकार, चाहें वे कैसे भी जर्जर और हल्की नीव के हों, अथवा अन्याय ही से क्यों न संगठित हों, सहज मैं नही छोडे जा सकते। भद्रजन उन्हें विचार से काम में लाते है और हठी तथा दुराग्रही उनमें तब तक परिवर्तन भी नहीं करना चाहते, जब तक वे एक बार ही न हटा दिये जायं । दौवारिक-(प्रवेश करके)-जय हो देव ! महामान्य परिषद् के सभ्यगण आये है। देवदत्त-उन्हे लिवा आओ। [दौवारिक जाकर लिवा लाता है] सभ्यगण-सम्राट् की जय हो ! (देवदत्त का अभिवादन करते हैं) देवदत्त-राष्ट्र का कल्याण हो । राजा और परिषद् की श्री-वृद्धि हो । [सब बैठते हैं] एक सभ्य-क्या आज्ञा है ? अजातशत्र -आप लोग राष्ट्र के शुभचिन्तक है। जब पिताजी ने यह प्रकाण्ड बोझ मेरे सिर पर रख दिया और मैने इसे ग्रहण किया, नब इसे भी मैने किशोर जीवन का एक कौतुक ही समझा था। किन्तु बात वैसी नही थी ! मान्य महोदयो, राष्ट्र में एक ऐसी गुप्त-शक्ति का कार्य खुले हाथो चल रहा है, जो इस शक्तिशाली मगध-राष्ट्र को उन्नत नही देखना चाहती। और मैने इस बोझ को केवल आप लोगों की शुभेच्छा का महारा पाकर लिया था। आप लोग बताइये कि उस शक्ति का दमन आप लोगों को अभीष्ट है कि नही ? या अपने राष्ट्र और सम्राट को आप लोग अपमानित करना वाहते है ? दूसरा सभ्य - कभी नही। मगध का राष्ट्र सदैव गर्व से उन्नत रहेगा और विरोधी शक्तियां पददलित होगी। देवदत्त-कुछ मै भी कहना चाहता हूँ। ऐसे समय जब मगध का राष्ट्र अपने यौवन मे पैर रख रहा है, तब विद्रोह की आवश्यकता नही, राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक को उमकी उन्नति मोचनी चाहिये । गजकुल के कोटुम्बिक झगडो से और राष्ट्र से कोई ऐमा सम्बन्ध नही कि उनके पक्षपाती होकर हम अपने देश की और जाति की दुर्दशा करावें। सम्राट की विमाता वार-बार विप्लव की सूचना दे रही हैं। यद्यपि महामान्य सम्राट् विम्बिसार ने अपने सब अधिकार अपनी सुयोग्य सन्तान को दे दिये है, फिर भी ऐमी दुप्चेष्टा क्यों की जा रही है ? काशी, जो कि बहुत दिनों से मगध का एक सम्पन्न प्रान्त रहा है, वासवी देवी के षड्यन्त्र से राजस्व देना अस्वीकार करता है। वह कहता है कि मैं कोमल का दिया हुआ वासवी देवी का रक्षित धन हूँ। क्या ऐसे सुरम्य और धनी प्रदेश को मगध छोड़ देने को प्रस्तुत है ? २३४: प्रसाद वाङ्मय